तालिबान और भारत अचानक करीब, लेकिन पाकिस्तान क्यों घबराया? और ट्रम्प भी परेशान हैं?
दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के बाद से साउथ एशिया की राजनीतिक तस्वीर बदल रही है | अफगानिस्तान के तालिबानी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी अब भारत दौरे पर हैं, और ये दौरा सिर्फ औपचारिकता नहीं बल्कि बड़े गेम चेंज का संकेत है | भारत और तालिबान के बीच करीब 5 साल बाद ये सबसे महत्वपूर्ण मुलाकात मानी जा रही है |
दिलचस्प बात यह है कि मुत्तकी को भारत आने के लिए विशेष छूट लेनी पड़ी, क्योंकि वह यूएन की प्रतिबंधित आतंकवादी लिस्ट में शामिल हैं | इस दौरे में मानवीय मदद, व्यापार, ड्राय फ्रूट एक्सपोर्ट, चाबहार रूट और रीजनल सिक्योरिटी जैसे मुद्दे मुख्य एजेंडा हैं |
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अब तालिबान सरकार को गंभीरता से ले रहा है | यह संकेत है कि भारत अफगानिस्तान में लंबे समय तक अपनी रणनीति मजबूत करना चाहता है | साथ ही, पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में अपना प्रभाव कम करने का ये एक सुनहरा मौका है |
अफगानिस्तान अब पाकिस्तान पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता | वह भारत, चीन और ईरान के साथ संबंध बढ़ाकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है | अगर भारत तालिबान के साथ भरोसेमंद समझौता कर लेता है, तो पूरे अफगानिस्तान में उसकी पैठ बढ़ सकती है |
इसके अलावा, भारत ने अमेरिका की उस योजना का विरोध किया जिसमें तालिबान से बगराम एयरबेस वापस लेने की बात थी | ये स्टैंड न केवल तालिबान को विश्वास दिलाता है, बल्कि भारत की साउथ एशिया में बढ़ती भूमिका को भी रेखांकित करता है |
क्या इस दौरे के बाद भारत-तालिबान रिश्ता नए मोड़ पर पहुँच सकता है? और क्या पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान अब पिछली सहारा ही नहीं रहेगा? तालिबान के साथ भरोसेमंद बातचीत से भारत, अफगानिस्तान में आतंकवाद रोकने और क्षेत्रीय सिक्योरिटी सुनिश्चित करने में बड़ा फायदा उठा सकता है |



