क्या रायबरेली में सिर्फ एक इंसान की हत्या हुई या संविधान की आत्मा को ही कुचल दिया गया? 2 अक्टूबर की रात, गांधी जयंती के दिन, उत्तर प्रदेश के रायबरेली में दलित युवक हरिओम वाल्मीकि को भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला | शुरू में कहा गया कि हरिओम ड्रोन चोर था, लेकिन जब अगला वीडियो सामने आया, तो सच कुछ और ही निकला | उस वीडियो में हरिओम मार खाते हुए राहुल गांधी का नाम लेता दिखाई देता है, और भीड़ में से आवाज आती है यहां सब बाबा वाले हैं |
यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि उस सोच का पर्दाफाश था जो इंसानियत पर नफरत का रंग चढ़ा रही है | सवाल यह उठता है कि आखिर किसने दी इस भीड़ को यह हिम्मत कि कानून की जगह लाठियों ने ले ली? क्यों संविधान की आवाज को हिंसा की गूंज में दबा दिया गया?
अब तक 6 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया है और 10 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन सवाल वही है क्या हरिओम को न्याय मिलेगा, या यह मामला भी आंकड़ों में गुम हो जाएगा? हरिओम की पत्नी पिंकी, जो बैंक में सफाईकर्मी हैं, आज भी यही पूछ रही हैं कि क्या मेरे पति का गुनाह सिर्फ दलित होना था?
गांधी की धरती पर, अहिंसा के दिन, इंसानियत को नंगा कर पीटा गया और सत्ता खामोश रही | राहुल गांधी ने कहा कि यह हत्या सिर्फ इंसान की नहीं, इंसानियत की है | अब पूरा देश यही पूछ रहा है कि क्या भारत संविधान से चलेगा या भीड़ की सनक से?
क्या यह सिर्फ रायबरेली की कहानी है या उस पूरे सिस्टम की, जिसने न्याय को डर के सामने झुका दिया है? आपका क्या मानना है क्या भीड़ का शासन संविधान से बड़ा हो गया है?



