ट्रंप के टैरिफ का चीन ने दिया मुहतोड़ जवाब और बिच में फास गया भारत, जी हाँ दोस्तों, भारत-अमेरिका टैरिफ वॉर अभी रुका नही की चीन-अमेरिका टैरिफ वॉर शुरू हो गया | लेकिन भाई चीन शांत बैठने वालो में से नहीं है | शी जिनपिंग ने ट्रंप के 100% टैरिफ का ऐलान करने के तुरंत बाद एक ऐसी चाल चली जिससे ट्रंप को सिर्फ जवाब ही नहीं मिला बल्कि उनका दिल भी दहल उठा | यही नहीं इस टैरिफ वॉर से भारत के हाथ भी एक ऐसी चाबी लग गई है जो अमेरिका के होश उड़ा देगी |
दोस्तों, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के शी जिनपिंग के बीच छिड़े टैरिफ वॉर ने अब एक अत्यंत खतरनाक मोड़ ले लिया है। एक तरफ ट्रंप ने चीन पर 100% तक अतिरिक्त टैरिफ ठोककर कुल शुल्क 130% तक पहुंचा दिया है, वहीं दूसरी ओर जिनपिंग ने एक ऐसी गुप्त चाल चली है, जो सीधे तौर पर अमेरिका को ‘पंगु’ बना सकती है और ट्रंप का दर्द कई गुना बढ़ा सकती है!
जी हां, यह पूरा मामला जुड़ा है ‘रेयर अर्थ मैग्नेट’ से, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, एयरोस्पेस और रक्षा उद्योगों की जीवनरेखा हैं। आपको बतादे की दुनिया के 90% भारी रेयर अर्थ चुम्बकों के उत्पादन पर चीन का एकछत्र नियंत्रण है। अब चीन ने भारत को इन अति-महत्वपूर्ण मैग्नेट्स के निर्यात के लिए एक चौंकाने वाली शर्त रखी है। क्या आप जानते हैं? बीजिंग ने भारत से गारंटी मांगी है कि यह सामग्री किसी भी कीमत पर अमेरिका तक नहीं पहुंचेगी!
चीन ने साफ कहा है कि ये मैग्नेट केवल भारत की घरेलू जरूरतों के लिए ही इस्तेमाल किए जाएं, और उसने ‘वासेनार व्यवस्था’ जैसे सख्त एक्सपोर्ट कंट्रोल एश्योरेंस की मांग की है। भारत इस 42 देशों के समूह का सदस्य है, जो दोहरे उपयोग की तकनीकों के जिम्मेदार ट्रांसफर को बढ़ावा देता है, लेकिन चीन खुद इसका हिस्सा नहीं है। सवाल यह है – क्या भारत सरकार चीन की यह शर्त औपचारिक रूप से स्वीकार करेगी?
यह चाल अमेरिका के लिए दोहरा झटका है। एक ओर, ट्रंप ने टैरिफ लगाकर चीन को 130% के शिकंजे में कस दिया है, लेकिन दूसरी ओर, चीन की इस ‘दुर्लभ’ चाल से अमेरिका को रेयर अर्थ मैग्नेट्स की सप्लाई के मामले में भारत की ‘मित्रता’ का भी कोई फायदा नहीं मिल पाएगा! भारत, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 में 306 करोड़ रुपये के रेयर अर्थ चुम्बक आयात कर चुका है, के लिए भी यह शर्त एक बड़ा सिरदर्द है, खासकर उसके तेजी से बढ़ते ईवी सेक्टर के लिए।
ट्रंप के लिए आने वाले दिन आसान नहीं होने वाले हैं। चीन अपनी सप्लाई चेन की ‘अजेय’ स्थिति का इस्तेमाल अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता में प्रेशर टैक्टिक्स के रूप में कर रहा है। बीजिंग के इस आक्रामक कदम से वैश्विक व्यापार की नींव डगमगा गई है! क्या जिनपिंग की यह ‘घातक’ रणनीति अमेरिका को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगी? ‘दुर्लभ’ धातुओं की यह लड़ाई अब सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक शक्ति का महासंग्राम बन चुकी है!



