क्या आपने कभी सोचा है कि सोशल मीडिया पर बैन लगने से कोई सरकार क्यों गिर सकती है? नेपाल में यही हुआ, पर कहानी इतनी सीधी नहीं है। यह सिर्फ़ सोशल मीडिया बैन की नहीं, बल्कि एक ऐसे उबाल की है जो सालों से अंदर ही अंदर सुलग रहा था।
नेपाल के नेता अपनी शान-शौकत में चूर थे। उनके बच्चे विदेशों से लाखों के गुची बैग लिए आते थे। वहीं, देश के आम युवा भूख और ग़रीबी से तंग आकर हज़ारों मील दूर, एक अनजान युद्ध में मारे जा रहे थे। रूस-यूक्रेन जंग ने नेपाल के हज़ारों युवाओं को भाड़े का सैनिक बना दिया। नौकरी और नागरिकता के लालच में गए इन युवाओं के शव बॉडी बैग में लौट रहे थे।
सोशल मीडिया पर यही तस्वीरें वायरल हुईं, एक तरफ़ नेताओं के बच्चे आलीशान ज़िंदगी जीते हुए, और दूसरी तरफ़ ग़रीब परिवारों के बेटों के ताबूत। इस विषमता ने जनता के गुस्से को हवा दी। इसे दबाने के लिए, सरकार ने 26 सोशल मीडिया ऐप्स पर बैन लगा दिया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। यह बैन जनता की आवाज़ को दबाने की एक नाकाम कोशिश थी।
और फिर हुआ वही जिसकी उम्मीद थी। जनता सड़कों पर उतर आई। यह विद्रोह किसी साजिश का नतीजा नहीं था, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और अन्याय के ख़िलाफ़ एक सामूहिक विस्फोट था। मंत्रियों के घरों को जलाया गया, उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। यह सिर्फ़ ऐप बैन का गुस्सा नहीं था, बल्कि उस व्यवस्था के ख़िलाफ़ था, जिसने देश के युवाओं को मौत के मुंह में धकेल दिया था। नेपाल की यह कहानी हमें बताती है कि जब जनता की आवाज़ को दबाया जाता है, तो वह और भी ज़ोर से बाहर आती है।



