अफगानिस्तान में आए शक्तिशाली भूकंप ने एक बार फिर तबाही मचा दी है और देखते ही देखते पूरा इलाका तबाही में बदल गया। रविवार की रात, जब ज़्यादातर लोग गहरी नींद में थे, 6.0 तीव्रता के भूकंप ने ज़मीन को हिलाकर रख दिया। इसके बाद मंगलवार को 5.5 तीव्रता का एक और झटका महसूस किया गया। इस दोहरी मार ने देश के दक्षिणी-पूर्वी हिस्सों को मलबे के ढेर में बदल दिया है।
अब तक इस प्राकृतिक आपदा में मरने वालों की संख्या 1400 को पार कर चुकी है, जबकि 3250 से ज़्यादा लोग घायल हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि तबाही का मंजर कितना भयानक है। सबसे ज़्यादा मौतें पहाड़ी इलाकों में हुई हैं, जहां राहत और बचाव कार्य पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।
इस भयंकर त्रासदी के बाद, तालिबान सरकार ने दुनिया से मदद की गुहार लगाई है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा मानवीय सहायता रोके जाने के बाद, यह अपील एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है। इसी बीच भारत ने सबसे पहले हाथ बढ़ाया और तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए 15 टन खाने का सामान और 1000 टेंट भेजकर अपनी मानवीय ज़िम्मेदारी निभाई है। चीन और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी मदद का हाथ बढ़ाया है।
यह भूकंप सिर्फ ज़मीन नहीं हिला रहा, बल्कि एक ऐसी कहानी कह रहा है, जहां हर पल एक नया आंकड़ा, एक नई त्रासदी सामने आ रही है। क्या यह आपदा एक चेतावनी है कि आने वाले वक्त में और भी बड़े झटके दुनिया को हिला सकते हैं? या फिर यह धरती का सबसे खतरनाक रेड जोन बनने की ओर बढ़ रहा है?



