बिहार की सियासत में वो हो गया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी… नीतीशे के चली! हां, बिहार में नीतीश कुमार ने एक बार फिर ऐसा दांव चला कि भाजपा को भी उनके ही मिजाज के मंत्री बनाने पड़े। रिकॉर्ड 10वीं बार शपथ, लेकिन कहानी सिर्फ शपथ की नहीं… शपथ के पर्दे के पीछे छुपी उस राजनीति की है जिसने 2020 से भी ज्यादा ताकतवर नीतीश कुमार को फिर से खड़ा कर दिया। 29 अक्टूबर तक मीडिया में संशय था—क्या नीतीश रहेंगे? क्या भाजपा अपना सीएम ला देगी? लेकिन अचानक, हवा बदली… और अब कहानी कुछ और ही कह रही है।
कैबिनेट में एक साथ 26 मंत्रियों की शपथ, 10 सीटें खाली छोड़ देना, और भाजपा का सॉफ्ट चेहरे चुनना—ये सामान्य फैसले नहीं थे। यह उन संकेतों में से है जिन्हें दिल्ली से पटना तक सभी समझ रहे हैं कि आगे भी नीतीश ही कमान में रहेंगे और 2030 का रोडमैप BJP ने नीतीश के इर्द-गिर्द ही तैयार किया है। Suspense यहां बढ़ता है—जब भाजपा 89 सीटें जीतकर नंबर-1 पार्टी है, LJP, HAM, RLM के साथ 117 तक पहुंच सकती थी… तो फिर उसने नीतीश की हर बात क्यों मानी? कहीं ये राजनीति का छुपा सौदा तो नहीं?
अब असली Hidden Secret—बिहार में RSS का प्रभाव उतना नहीं जितना गुजरात, MP में है, इसलिए भाजपा वहां की तरह प्रयोग नहीं कर पाई। दूसरा, नीतीश सिर्फ नेता नहीं, सेंटिमेंट हैं—महिलाओं से लेकर EBC, महादलित तक 16% वोट सिर्फ उनके नाम पर खड़ा रहता है। अगर भाजपा उन्हें हटाती, तो वोटर भड़क सकते थे, और भाजपा ये रिस्क बिल्कुल नहीं लेना चाहती थी। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती… असली Suspense इस बात में है कि भाजपा मानकर चल रही है—नीतीश के बाद JDU टूटेगी और वोट अपने-आप NDA में आ जाएंगे। इसलिए अभी नीतीश को आगे रखना ही सबसे सुरक्षित चाल है।
तो दोस्तों, बिहार की राजनीति की असली कहानी यही है—नीतीशे के चली… और भाजपा चली उनकी चली।



