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संतरे जैसा गठबंधन, अमित शाह का वार या सियासी सच?

संतरे जैसा गठबंधन… छिलका उतरते ही बिखर जाएगा!, अमित शाह के इस बयान ने बिहार की सियासत में मानो बिजली गिरा दी हो। लेकिन असली सवाल ये है — क्या सच में विपक्ष का “महागठबंधन” अंदर से इतना कमजोर है? या ये सिर्फ चुनावी शतरंज की एक चाल है? बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक तापमान उस उबलते हुए बिंदु पर पहुँच चुका है जहाँ हर शब्द एक गोला बनकर फूट रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर तीखा तंज कसते हुए कहा की महागठबंधन संतरे जैसा गठबंधन है, छिलका उतरते ही बिखर जाएगा। ये सिर्फ एक बयान नहीं था, बल्कि एक संदेश था — NDA में एकता है, और विपक्ष में बिखराव। शाह ने साफ कहा कि एनडीए के पास पाँच पांडवों जैसी ताकत है — मोदी जी का नेतृत्व, नीतीश जी का अनुभव, चिराग पासवान का जोश, मांझी जी की तपस्या और उपेंद्र कुशवाहा का अनुभव। पाँचों मिलकर बिहार को नई दिशा देंगे। लेकिन दूसरी ओर, लालू यादव और उनकी पार्टी पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा — “लालू जी की सिर्फ एक ही इच्छा है, उनका बेटा मुख्यमंत्री बने… पर बिहार में मुख्यमंत्री की कोई वैकेंसी नहीं है!”

अब सवाल उठता है — क्या महागठबंधन सिर्फ “कुर्सी का खेल” है या एक बड़ा पलटवार आने वाला है? शाह ने नीतीश कुमार को NDA का चेहरा बताते हुए सभी अटकलों को खत्म करने की कोशिश की, लेकिन जब डिप्टी सीएम के नाम पर उनसे सवाल हुआ, तो उन्होंने मुस्कराकर कहा — “समय आने पर तय करेंगे।” क्या ये मुस्कान किसी राजनीतिक रहस्य को छिपा रही है? यही तो है बिहार की सियासत का असली सस्पेंस — जहाँ हर बयान के पीछे छिपा होता है एक नया समीकरण।

तो क्या वाकई “संतरे जैसा गठबंधन” बिखर जाएगा? या फिर चुनावी नतीजे इस कहानी को पलट देंगे? बिहार की जनता अब सिर्फ वोट नहीं डालने जा रही… वो तय करने जा रही है कि इस “संतरे” का छिलका कितना मजबूत है!

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