मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में 16 बच्चों की मौत ने पूरे सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल है कि क्या एक डॉक्टर की गिरफ्तारी और एक दवा कंपनी पर FIR ही काफी है, जबकि जहरीला ‘कोल्ड्रिफ’ सिरप 46.2% डायएथिलिन ग्लायकॉल (DEG) के साथ बच्चों की किडनी गलाता रहा?
यह दवा नहीं, ज़हर का कारोबार था! अब जब शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी सलाखों के पीछे हैं और तमिलनाडु की श्रेसन फार्मास्युटिकल पर केस दर्ज है, तो सबसे बड़ा सवाल ड्रग डिपार्टमेंट पर है। सरकारी रिपोर्ट में ज़हर की पुष्टि हुई, लेकिन इस घातक सिरप को बाज़ार में बिकने की इजाज़त किसने दी? बैतूल तक मौत का साया फैलने के बावजूद, ड्रग कंट्रोलर बेदाग क्यों है?
क्या यह कार्रवाई सिर्फ छोटे मोहरों पर हुई है? जबलपुर में डीलर कटारिया फार्मास्युटिकल सील हो गया, लेकिन उस सरकारी सिस्टम का क्या जो नींद में रहा? यह मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, बल्कि लाइसेंसशुदा हत्या का है! एसआईटी तमिलनाडु जा रही है, लेकिन जांच की आंच भोपाल और जबलपुर के ड्रग डिपार्टमेंट तक क्यों नहीं पहुंच रही?
16 मौतों का हिसाब कौन देगा? दोषियों पर आजीवन कारावास की तलवार लटकी है, लेकिन क्या सिस्टम की जवाबदेही तय किए बिना, इन मासूमों को न्याय मिल पाएगा? क्या सरकार जानबूझकर ड्रग डिपार्टमेंट को बचा रही है? देश की दवा सुरक्षा पर यह सबसे बड़ा दाग है, जिसका जवाब सरकार को देना ही होगा।



